राजस्थान में सैन यानि नाई समाज अति पिछड़ा वर्ग में शामिल है। इस समाज की बहुलता वाला कोई क्षेत्र विशेष नहीं है। इसलिए राजनीतिक दलों के स्तर पर हमेशा से उपेक्षा होती रही है। किशनाराम नाई, विमल भाटी, राजेंद्र सैन, महेंद्र गहलोत,प्रभु सैन ऐसे जुझारू नेता है जो टिकट के लिए दावेदार है। सूरतगढ़ में प्रभु सैन ने अपना बायोडेटा दिया है। वे क्षेत्र में काफी सक्रिय है और उनकी पकड़ अन्य समाजों में भी है। वहीं, डूंगरगढ़ में किशनाराम नाई की भाजपा में वापसी भी समाज के लिए शुभ संकेत है। जयपुर में राजेंद्र सैन कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता है। उनके लिए भी प्रयास किए जाने चाहिए।
जातियां गेमचेंजर की भूमिका निभाती है
राजस्थान में 200 विधानसभा क्षेत्रों में से 90 सीट ऐसी मानी जाती हैं जहां जातियां गेमचेंजर की भूमिका निभाती है। सत्ता तक पहुंचने की चाबी भी इनके हाथ रहती है। यहीं वजह है चुनाव से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सभी प्रमुख जातियों के नाम से बोर्ड का गठन कर इन्हे साधने की कोशिश की। वहीं, ये जातियां भी संख्याबल के आधार पर राजनीतिक दलों से टिकटों की मांग कर रही हैं।
महाकुंभ, महासम्मेलन, महारैली, महासंगम, हुंकार रैली, मैराथन दौड़ जैसे आयोजनों के जरिए शक्ति प्रदर्शन कर राजनीतिक दलों पर ज्यादा से ज्यादा टिकट के लिए दबाव बनाए हुए है। इन आयोजनों में भी सामाजिक और जातीय एकता पर जोर देते हुए एक ही संदेश दिया जा रहा है कि पार्टी-वार्टी कुछ नहीं बस, जाति के लोगों को ज्यादा से ज्यादा टिकट मिले। मांग पूरी नहीं करने वाले राजनीतिक दलों को चुनाव में सबक सिखाने जैसी चेतावनी दी जा रही है।
इन आयोजनों और चेतावनी ने सत्तारूढ़ कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों की टेंशन को बढ़ा रखा है। जिस हिसाब ये जातियां टिकट मांग रही हैं, उस संख्या में टिकट देने से कई समीकरण बिगड़ सकते है। दरअसल, कुछ बड़ी और प्रभावशाली जातियां ऐसी हैं जहां परस्पर प्रतिस्पर्धा के कारण राजनीतिक पार्टियों के लिए टिकट की संख्या बहुत मायने रखेगी। जाति आधारित जनगणना नहीं होने से किसी जाति या समाज के लोगों की वास्तविक संख्या और उनके प्रभाव क्षेत्रों का कोई सटीक और आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। पिछले चुनाव परिणामों के आधार पर विश्लेषण कर प्रभाव का आकलन किया जाता है। इन तमाम स्थितियों को देखते हुए राजनीतिक दल जातिगत आधार पर टिकट देने से बच रहे है और टिकट घोषणा किस तरह की जाए, इस पर भी मंथन कर रहे है ताकि किसी जाति को यह नहीं लगे कि उसकी उपेक्षा हुई है।
यह है जातिगत समीकरण
राजस्थान में 89 फीसदी आबादी हिंदू, 9 फीसदी मुसलमान और शेष दो फीसदी अन्य धर्मों के लोग है। एससी 18 और एसटी 13 फीसदी है। जाटों की आबादी 12 फीसदी, गुर्जर-राजपूतों की आबादी 9-9 फीसदी, जबकि ब्राह्मण-मीना की आबादी 7-7 फीसदी है। मारवाड़ और शेखावटी में करीब 50 सीटों पर जाट और राजपूत हार—जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। मेवात में 20 सीटों पर गुर्जर, मीणा, जाट और मेव का प्रभाव है। हाड़ौती में 10 सीटों पर ब्राह्मण, जैन और वैश्य समाज तथा मेवाड़ में पाटीदार, पटेल, डांगी, देवासी और आदिवासी एक दर्जन सीटों पर समीकरणों को प्रभावित करते हैं। इन समीकरणों को देखकर भाजपा परिवर्तन यात्रा और नेताओं के दौरे तय कर रही है। परिवर्तन यात्रा का रूट और उनके प्रभारी पदाधिकारी इस पर तय किए हैं कि वे अपने प्रभाव से परम्परागत वोट बैंक को बचाते हुए कांग्रेस के गढ़ में सेंधमारी कर सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और अन्य केंद्रीय मंत्रियों के दौरे एवं कार्यक्रम भी इन्हे देखकर तय किए जा रहे हैं। वहीं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विभिन्न जातियों के बोर्डों का गठन कर जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश की है। जाट जाति के लिए तेजाजी बोर्ड, राजपूत जाति के लिए महाराणा प्रताप और यादव के लिए कृष्ण बोर्ड बनाने की घोषणा हो चुकी है. गुर्जर के लिए देवनारायण बोर्ड, माली के लिए ज्योतिबा फुले , धोबी के लिए रजक, नाई के लिए केश कला, कुम्हार के लिए माटी कला, लोध के लिए अवंति बाई और बंजारा जाति के लिए घुमन्तु अर्ध घुमंतू बोर्ड का गठन किया जा चुका है।
कौन कितने वोट मांग रहा है
सैन समाज
सैन समाज की ओर से भी विभिन्न स्तर पर टिकट की मांग की जा रही है। राजस्थान में श्रीडूंगरगढ़, सूरतगढ़ में सैन समाज के लोगों टिकट प्राप्त करने के लिए सक्रिय है। समाज को कम से कम पांच—पांच टिकट भाजपा और कांग्रेस को देने चाहिए।
राजपूत समाज
क्षत्रिय करणी सेना ने विधानसभा चुनाव में 75—75 सीटों पर राजपूत उम्मीदवारों को टिकट देने की मांग की है। इतने टिकट नहीं देने पर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतारने की चेतावनी दी है। 8 अक्टूबर को जयपुर में महापड़ाव आयोजित कर शक्ति प्रदर्शन किया जाएगा। राजपूत समाज के अन्य संगठनों द्वारा सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से भी दबाव बनाया जा रहा है। समाज से जुड़े अन्य संगठनों की ओर से पहले भी हुंकार रैली तथा अन्य आयोजनों के माध्यम से टिकट की मांग की जा चुकी है।
जाट समाज
राजस्थान में जाट समाज आबादी के हिसाब से टिकट की मांग करने के साथ ही अगला मुख्यमंत्री जाट समाज से बनाए जाने की रणनीति को लेकर दोनों दलों पर दबाव बनाए हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय जाट समाज के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस मांग को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी अप्रेल में मुलाकात की थी। इसके साथ ही, राजनीतिक दलों पर ज्यादा से ज्यादा टिकट की मांग की जा रही है।
ब्राह्मण समाज
ब्राह्मण समाज से जुड़े विभिन्न संगठनों की ओर से पिछले छह महीने में कई बड़े आयोजन जयपुर तथा अन्य शहरों में किए गए। जिनमें प्रत्येक दल से 35 से 40 सीटें ब्राह्मणों को देने की मांग की गई है।
वैश्य समाज
अग्रवाल, वैश्य समाज की ओर से भी महारैली, महासंगम जैसे आयोजन जयपुर में किए गए है और आने वाले समय भी होने है। इनका एक ही मकसद है कि इस वर्ग की टिकट वितरण में कोई राजनीतिक दल उपेक्षा नही करें। वैश्य समाज की ओर से भी जयपुर में आयोजित महाकुंभ में अग्रवाल समाज ने विधानसभा चुनाव में 20—20 टिकट मांगे। साथ ही, राजस्थान में व्यापारी आयोग की स्थापना की मांग की। भाजपा ने सत्ता में आने पर आयोग की मांग पूरी करने का आश्वासन दिया।
देवासी समाज
देवासी समाज की ओर से जोधपुर में 29 अगस्त को एक बड़ा सम्मेलन कर अपना शक्ति प्रदर्शन किया। महाकुंभ में सरकार के सामने रखीं 5 मांगें रखी और स्पष्ट तौर पर कहा कि जो राजनीतिक दल इन मांगों को नजरंदाज करेगा, उसे चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है। आरक्षण को लेकर मौजूद विसंगतियों को दूर कर देवासी समाज को आरक्षण का लाभ देने, जनसंख्या के अनुपात में देवासी समाज की राजनितिक भागीदारी बढ़ाने, जिला और ब्लॉक स्तर पर देवासी समाज की शिक्षण संस्थाओं का निर्माण कराने, भूमिहीन देवासी समाज के लोगों को जमीन का पट्टा देने और घुमंतु परिवार के बच्चों के लिए प्रदेश भर में आवासीय विद्यालय खोलने की मांग की गई। इस महाकुंभ में पूर्व पशुपालन मंत्री ओटाराम देवासी, पूर्व मंत्री रतनलाल देवासी के साथ-साथ भाजपा के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सागर रायका, भाजपा प्रदेश महामंत्री सांवला राम देवासी सहित देवासी समाज के कई नामचीन लोग मौजूद थे।
डांगी, पटेल, पाटीदार समाज
पिछले दिनों डांगी, पटेल, पाटीदार समाज का यह सामाजिक चिंतन शिविर उदयपुर के नगर निगम सुखाड़िया रंगमंच पर आयोजित किया गया। इसमें मेवाड़ और वागड़ के साथ गुजरात के डांगी पटेल पाटीदार समाज के लोगों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम समाज के नेताओं ने कहा कि इन दिनों राजीतिक दलों द्वारा समाज के लोगों को राजनीति से दूर कर दिया गया है.ऐसे में समाज एकजुट होकर इस बार उसी को वोट देगा जो समाज के उम्मीदवार को टिकिट देगा। चिंतन शिविर के दौरान समाज के लोगों को उचित दर्जा दिलाने के लिए भी रणनीति तैयार की गई.इसमें शिक्षा बेरोजगारी और महिला उत्थान के लिए समाज एकजुट हो होकर आगे बढ़ाने पर विचार-विमर्श किया गया। समाज के प्रबुद्ध जनों ने कहा कि जून में एक विशाल महासम्मेलन का आयोजन किया गया।
माली समाज
माली ,सैनी ,कुशवाहा ,मौर्य समाज ने 12 प्रतिशत आरक्षण की मांग को लेकर चक्का जाम करते हुए नेशनल हाइवे पर टेंट लगाया था। इसका मकसद एकजुटता दिखना था। माली समाज ने भी कांग्रेस और भाजपा से टिकटों की मांग की है। यह समाज भी 20—20 टिकट की मांग राजनीतिक पार्टियों से कर रहा है।
धाकड़ समाज
कोटा में खड़े गणेश जी स्थित धरणीधर गार्डन पर आयोजित बैठक में धाकड समाज की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की गई। धाकड़ समाज का दावा है कि राजस्थान में 17 विधानसभा क्षेत्रों में धाकड़ समाज और उसके विभिन्न घटकों का बाहुल्य है.ऐसे में विभिन्न राजनीतिक दलों से कम से कम पांच सीटों पर धाकड़ समाज और उसके घटकों को टिकट दिए जाने की मांग की गई।
कुमावत समाज
राजस्थान कुमावत समाज की ओर से जयपुर महापंचायत का आयोजन किया गया। इस महापंचायत के मंच से समाज के नेताओं ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भी अपनी मंशा जाहिर की। समाज की ओर से बीजेपी और कांग्रेस जैसी प्रमुख पार्टियों से 10-10 टिकट की मांग रखी है।